Lekhika Ranchi

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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःउन्मादिनी


असमंजस सुभद्रा कुमारी चौहान

“आप इतने दिन से आए क्यों नहीं केशव जी?” सभा-मंडप के बाहर निकलते-निकलते कुसुम ने पूछा।

'मैं अपने मित्र बसंत के साथ बाहर चला गया था । केशव ने बसंत की ओर इशारा करते हुए जवाब दिया।

कुसुम ने बसंत की ओर देखा, फिर जरा रुकती हुई बोली, क्या यही आपके मित्र बसंत हैं? मैंने जैसे इन्हें पहले कभी देखा है। कन्वोकेशन डिबेट में फर्स्ट प्राइज आप ही को मिला था?

कन्वोकेशन डिबेट में फर्स्ट प्राइज जीतने वाला बसंत एक बालिका के सामने कुछ घबरा-सा गया, उसका चेहरा लाल हो गया, उसने कुछ भी उत्तर न दिया।
केशव ने कहा, हाँ, प्राइज इन्हीं को मिला था।

उसके बाद कुसुम, बसंत और केशव दोनों को शाम के समय अपने यहाँ चाय के लिए निमंत्रित करके अपने पिता के साथ कार पर बैठकर चली गई।

कुसुम कुमारी अपने माता-पिता की इकलौती कन्या है। इलाहाबाद के जार्जटाउन में, जहाँ शहर के धनी-मानी व्यक्तियों के बँगले हैं वहीं कुसुम के पिता की एक विशाल कोठी है। शहर के प्रमुख धनी व्यक्तियों में उनकी गणना है। उनके पास मोटर है, गाड़ी है, और भी न जाने क्या-क्या है। दस-पाँच नौकर सदा उनके घर पर काम किया करते हैं। घर बैठे केवल लेन-देन से ही उन्हें छह-सात सौ रुपए मासिक की आमदनी हो जाती है। कुसुम ही उनकी एक मात्र संतान है जो वहीं क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल में मैट्रिक में पढ़ती है।

केशव कुसुम का पड़ोसी है, यूनिवर्सिटी में बी०ए० का विद्यार्थी है। बसंत केशव का सहपाठी है, वह अपने मामा के साथ अहियापुर में रहता है। बसंत के माता-पिता वचपन में ही मर चुके हैं और तभी से बसंत अपने मामा का आश्रित है। बसंत पढ़ने-लिखने में कुशाग्रबुद्धि, सदाचारी, सरल स्वभाव और मिलनसार है, इसलिए शिक्षक उसे चाहते हैं और सहपाठी उसका आदर करते हैं।

शाम को केशव के आग्रह से बसंत कुसुम के घर पर आया तो जरूर था, किंतु उसे वहाँ बात-बात में संकोच मालूम हो रहा था। जब कुसुम उन्हें लेकर मखमली सीढ़ियों पर से ऊपर अपने ड्राइंगरूम में जाने लगी, तब बसंत ने अपने पैरों की ओर देखा। जहाँ कुसुम के कमल सरीखे मुलायम पैर पड़ रहे थे, वहाँ अपने धूल-भरे पैरों को रखने में उसको कुछ अटपटा-सा लगा। कमरे में पहुँचकर वहाँ की विभूतियों को देखकर, बसंत भौंचक-सा रह गया। ऐश्वर्य के प्रकाश में उसे अपनी दशा और भी हीन मालूम होने लगी। उस वातावरण के योग्य अपने को न समझकर उसे कष्ट हो रहा था। वह बार-बार सोचता था कि मैं नाहक ही यहाँ आया।

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